भाई दूज का शुभ महूर्त कब है ?

मुख्य बिंदु:

  • भाई दूज हिंदू धर्म में भाई-बहन के अटूट बंधन और प्रेम का प्रतीक है, जहां बहनें अपने भाइयों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
  • यह पर्व मुख्य रूप से कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है, और इसकी कथा यमराज व यमुना के भाई-बहन के प्रेम से जुड़ी है।
  • 2025 में भाई दूज 23 अक्टूबर को मनाया जाएगा, जो दीपावली के दो दिन बाद आता है।

कथा और महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्यदेव की संतान यमराज और यमुना बहन-भाई थे। यमुना ने यमराज का तिलक लगाकर भोजन कराया, जिससे प्रसन्न होकर यमराज ने वरदान दिया कि जो बहन इस दिन भाई को तिलक लगाएगी, उसके भाई की मृत्यु कभी न आएगी। यह त्योहार रक्षा बंधन की तरह भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता है।

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रीति-रिवाज
बहनें भाई को तिलक लगाती हैं, आरती उतारती हैं, नारियल देती हैं और स्वादिष्ट भोजन कराती हैं। भाई बदले में बहन को उपहार देते हैं और उसकी रक्षा का वचन देते हैं।

भाई दूज 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
द्वितीया तिथि 22 अक्टूबर रात 8:16 बजे से शुरू होकर 23 अक्टूबर रात 10:46 बजे तक रहेगी। तिलक का शुभ मुहूर्त लगभग 2 घंटे 15 मिनट का होगा, जिसमें शिववास योग भी बनेगा। अधिक जानकारी के लिए पंचांग देखें

भाई दूज: भाई-बहन के प्रेम का अनमोल त्योहार

हिंदू संस्कृति में त्योहारों का विशेष स्थान है, जो न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करते हैं बल्कि पारिवारिक बंधनों को भी सुदृढ़ बनाते हैं। इन्हीं में से एक है भाई दूज, जिसे भ्रातृ द्वितीया या यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार विशेष रूप से भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित है, जहां बहनें अपने भाइयों के प्रति कृतज्ञता और प्रेम व्यक्त करती हैं। दीपावली के उत्साह के बाद यह पर्व आता है, जो परिवारों को एकजुट करने का माध्यम बनता है। आइए, इसकी गहराई से समझें कि भाई दूज क्यों मनाया जाता है, इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है, और कैसे यह परंपरा आज भी जीवंत है।

भाई दूज की जड़ें प्राचीन हिंदू ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में निहित हैं। यह त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है – एक बार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को (जिसे मुख्य भाई दूज कहा जाता है) और दूसरी बार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को (जिसे होली भाई दूज के रूप में जाना जाता है)। हालांकि, दीपावली से जुड़ा कार्तिक का भाई दूज अधिक प्रचलित है।

इसकी शुरुआत की कथा यमराज और यमुना से जुड़ी है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया की दो संतानें थीं – यमराज (मृत्यु के देवता) और यमुना (नदी देवी)। यमराज अपनी बहन यमुना से अत्यधिक प्रेम करते थे, लेकिन उनकी कर्तव्यों के कारण वे शायद ही कभी मिल पाते थे। यमुना बार-बार अपने भाई को अपने घर बुलाने का आग्रह करती रहीं। एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन यमुना ने यमराज से वचन लिया कि वे उनके घर आएंगे।

जैसे ही यमराज यमुना के घर पहुंचे, यमुना ने उनका भव्य स्वागत किया। उन्होंने अपने भाई का स्नान कराया, उन्हें तिलक लगाया, आरती उतारी, और स्वादिष्ट भोजन परोसा। यमुना के इस प्रेम और आदर से यमराज अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने यमुना से वरदान मांगने को कहा। यमुना ने कहा, “भैया, आप हर साल इस दिन मेरे घर आया करें, और जो भी बहन इस दिन अपने भाई को तिलक लगाएगी, उसके भाई को कभी मृत्यु का भय न हो।” यमराज ने यह वरदान दे दिया। तब से ही भाई दूज की परंपरा चली आ रही है, जो भाई-बहन के प्रेम को अमर बनाती है।

यह कथा न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि सामाजिक संदेश भी देती है – भाई-बहन का रिश्ता रक्षा और समर्पण पर आधारित होता है। रक्षा बंधन की तरह, भाई दूज भी इस बंधन को मजबूत करता है, खासकर यदि रक्षा बंधन पर कोई कमी रह गई हो तो।

भाई दूज का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

भाई दूज का मूल उद्देश्य भाई-बहन के बीच विश्वास, प्रेम और पारस्परिक सम्मान को बढ़ावा देना है। यह त्योहार बताता है कि बहनें अपने भाइयों की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं, जबकि भाई बहनों की सुरक्षा का वादा करते हैं। धार्मिक दृष्टि से, यह यमराज की पूजा से जुड़ा है, जो मृत्यु के भय को दूर करता है। मान्यता है कि इस दिन तिलक लगाने से भाई को दीर्घायु प्राप्त होती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।

सांस्कृतिक रूप से, भाई दूज भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है – बंगाल में ‘भाई फोटा’, महाराष्ट्र में ‘भाऊ बीज’, गुजरात में ‘भाई बीज’, और नेपाल में ‘भाई तिहार’। यह त्योहार लिंग समानता को भी बढ़ावा देता है, क्योंकि यहां बहनें मुख्य भूमिका निभाती हैं। आधुनिक समय में, यह परिवारों को एकत्रित करने का अवसर बन गया है, जहां उपहार, मिठाइयां और पार्टियां आयोजित होती हैं।

विशेष रूप से, 2025 में यह त्योहार शिववास योग में आएगा, जो दोगुना आशीर्वाद प्रदान करेगा। यह योग भगवान शिव की कृपा से जुड़ा है, जो भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूत बनाएगा।

भाई दूज के रीति-रिवाज और विधि

भाई दूज के उत्सव में सरल लेकिन भावपूर्ण रीति-रिवाज होते हैं, जो घर-घर में अलग-अलग रूप लेते हैं। मुख्य विधि निम्नलिखित है:

क्रमांकरीति-रिवाजविवरणमहत्व
1भाई का स्वागतबहनें भाई को घर बुलाती हैं और द्वार पर स्वागत करती हैं।पारिवारिक एकता को दर्शाता है।
2तिलक लगानाबहनें भाई के माथे पर कुमकुम का तिलक लगाती हैं, आरती उतारती हैं।दीर्घायु और समृद्धि की कामना।
3नारियल भेंटभाई को नारियल दिया जाता है, जो सुख का प्रतीक है।यमराज को प्रसन्न करने के लिए।
4भोजन करानाबहनें भाई को विशेष व्यंजन (जैसे मिठाई, पूड़ी-सब्जी) खिलाती हैं।प्रेम और आदर का biểu।
5उपहार विनिमयभाई बहन को कपड़े, गहने या नकद उपहार देते हैं।रक्षा वचन का प्रतीक।
6यम पूजाकुछ परिवारों में यमराज की पूजा की जाती है।मृत्यु भय से मुक्ति।

ये रीति-रिवाज शुभ मुहूर्त में किए जाते हैं। 2025 में तिलक का मुहूर्त दोपहर से शाम तक सीमित होगा, इसलिए समय का ध्यान रखें। पूजा के बाद परिवार एक साथ भोजन करता है, जो त्योहार का समापन होता है।

2025 में भाई दूज: तिथि, मुहूर्त और विशेष योग

हिंदू पंचांग के अनुसार, 2025 का भाई दूज 23 अक्टूबर (गुरुवार) को मनाया जाएगा। द्वितीया तिथि 22 अक्टूबर रात 8:16 बजे से प्रारंभ होकर 23 अक्टूबर रात 10:46 बजे तक चलेगी। उदय तिथि के आधार पर मुख्य पर्व 23 को ही होगा।

शुभ मुहूर्त:

  • तिलक लगाने का समय: दोपहर 1:00 बजे से 3:15 बजे तक (लगभग 2 घंटे 15 मिनट)।
  • विशेष योग: शिववास योग, जो आध्यात्मिक लाभ दोगुना करेगा।

यदि आप उज्जैन या अन्य पंचांग के अनुसार जांचना चाहें, तो स्थानीय ज्योतिषी से सलाह लें, क्योंकि क्षेत्रीय भिन्नताएं हो सकती हैं। यह तिथि दीपावली (20-21 अक्टूबर 2025) के ठीक बाद है, इसलिए उत्सव की धूम बनी रहेगी।

भाई दूज का समकालीन प्रासंगिकता

आज के दौर में, जहां पारिवारिक रिश्ते व्यस्त जीवनशैली से प्रभावित हो रहे हैं, भाई दूज जैसे त्योहार महत्वपूर्ण हैं। यह न केवल भावनात्मक बंधन मजबूत करता है बल्कि महिलाओं को सशक्तिकरण का संदेश भी देता है। विभिन्न स्रोतों से पता चलता है कि यह त्योहार कोविड जैसी महामारियों के बाद और भी प्रिय हो गया है, क्योंकि यह परिवारिक पुनर्मिलन का प्रतीक है।

संक्षेप में, भाई दूज केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन के मूल्यों – प्रेम, रक्षा और कृतज्ञता – का उत्सव है। यदि आप इस वर्ष इसे मनाने की योजना बना रहे हैं, तो कथा पढ़कर या पूजा विधि अपनाकर इसे और यादगार बनाएं।

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