आज हम बताएँगे गोवर्धन पूजा कब शुरू हुई और गोवर्धन पूजा करने से आपको क्या लाभ होंगे Govrdhan Pooja

नमस्कार दोस्तों! दीपावली के ठीक अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा का त्योहार न केवल प्रकृति के प्रति हमारी श्रद्धा को दर्शाता है, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की एक अनोखी बाल लीला की याद दिलाता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति अहंकार से ऊपर होती है। आज के इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि गोवर्धन पूजा की परंपरा कब शुरू हुई और इससे जुड़ी वह प्रसिद्ध कथा जो सदियों से प्रचलित है। यदि आप भी इस त्योहार को मनाते हैं, तो यह ब्लॉग आपके लिए खास है। चलिए, शुरू करते हैं!

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गोवर्धन पूजा की उत्पत्ति कब और कैसे शुरू हुई यह परंपरा ?

गोवर्धन पूजा की जड़ें हिंदू पौराणिक कथाओं में गहरी समाई हुई हैं। यह त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है, जो दीवाली के दूसरे दिन पड़ता है। इसकी शुरुआत द्वापर युग से मानी जाती है, जब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को देवराज इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठा लिया था। यह घटना लगभग 5,000 वर्ष पुरानी है और भागवत पुराण में इसका लेख मिलता  है।

शास्त्रों के अनुसार, कृष्ण जी ने इस घटना के बाद ब्रजवासियों को आदेश दिया कि वे प्रतिवर्ष गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करें तथा अन्नकूट उत्सव मनाएं। तभी से यह परंपरा चली आ रही है, जो प्रकृति पूजा और कृष्ण भक्ति का प्रतीक बन गई। प्राचीन काल में यह ब्रज क्षेत्र (वृंदावन, मथुरा) तक सीमित था, लेकिन आज पूरे भारत में मनाया जाता है। यह पर्व गायों को लक्ष्मी का स्वरूप मानकर उनकी रक्षा पर जोर देता है, जो कृषि और समृद्धि का आधार हैं।

  1. समय – द्वापर युग, श्रीकृष्ण काल (लगभग 5,000 वर्ष पूर्व)।
  2. आरंभ – गोवर्धन उठाने की लीला के बाद कृष्ण के निर्देश पर।
  3. महत्व – इंद्र के अहंकार का अंत और प्रकृति भक्ति की शुरुआत।

गोवर्धन पूजा से जुड़ी प्रचलित कथा: कृष्ण की अनोखी लीला

गोवर्धन पूजा की सबसे प्रसिद्ध कथा भागवत पुराण से ली गई है, जो भगवान कृष्ण की बाल लीला का हिस्सा है। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची शक्ति भक्ति और विनम्रता में है, न कि घमंड में। आइए, इस रोचक कहानी को आज में आपको अपने शब्दों में बताने की पूरी कोशिश करूँगा हैं

कथा की शुरुआत गोकुल के ब्रजवासियों से होती है, जो इंद्र को वर्षा के लिए प्रसन्न करने हेतु अन्नकूट तैयार कर रहे थे। कृष्ण, जो मात्र 7 वर्ष के बालक थे,उन्होंने देखा कि लोग वर्षा का श्रेय इंद्र को दे रहे हैं, जबकि गोवर्धन पर्वत ही चारा, जल और आश्रय प्रदान करता है। उन्होंने यशोदा और नंद बाबा को समझाया कि इंद्र अहंकारी हैं और उनकी पूजा व्यर्थ है। वे तो कभी दर्शन भी नहीं देते। असल में वर्षा और चारे का स्रोत तो गोवर्धन पर्वत है, जहां हमारी गायें चरती हैं। आइए, गोवर्धन की पूजा करें।”

कृष्ण के तर्क सुनकर सभी ब्रजवासी राजी हो गए। उन्होंने इंद्र की बजाय गोवर्धन पर्वत का गोबर से प्रतिरूप बनाकर पूजा की। यह देखकर इंद्र को क्रोध आ गया। उन्होंने सोचा कि ब्रजवासी उनका अपमान कर रहे हैं। क्रोधित इंद्र ने मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी, बिजलियां गिराईं और ब्रज पर प्रलय लाने की कोशिश की। गोकुल में पानी भर गया, गायें और लोग भयभीत हो गए। सभी कृष्ण के पास पहुंचे और बोले, “कान्हा, यह सब तेरी चालाकी का फल है!” आज हमने इन्द्र देव की पूजा न करके उनको क्रोधित कर दिया है | अब हमारा क्या होगा

तब बाल स्वरूप कृष्ण मुस्कुराए। और उन्होंने कहा अब हमें गोवर्धन पर्वत भगवान की शरण में जाना चाहिए वही हमारी सहायता करेंगे| इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण सभी गोकुल वासियों और सभी पशुओ और जन्तुओ को लेके गोवर्धन पर्वत के पास पहुचे और गोवर्धन पर्वत से गोकुल की रक्षा करने के लिए आग्रह कर  उन्होंने अपनी सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी को उसके नीचे शरण लेने को कहा। इसा प्रकार सभी गोकुल वासियों को गोवर्धन पर्वत के निचे शरण लेते देख इन्द्र देव का क्रोध और बढ़ गया| इन्द्र देव ने अपने घमड़ के कारण सात दिनों तक भारी वर्षा की, लेकिन कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से बादलों को काटा और शेषनाग से पानी को रोक दिया। अंत में, इंद्र को कृष्ण की दिव्यता का बोध हुआ, तो वे ब्रह्मा के पास गए। ब्रह्मा ने कहा, “यह विष्णु स्वरूप है, जो धर्म की रक्षा के लिए अवतरित हुए हैं।” इंद्र ने क्षमा मांगी और स्वीकार किया कि सच्ची भक्ति प्रकृति और भगवान में है।

इस लीला से इंद्र का अहंकार चूर हो गया। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने गोवेर्धन पर्वत को नीचे रखा और कहा, “और इस दिन से गोवर्धन पर्वत की पूजा तथा  गायों की पूजा शुरू हुयी और इस दिन अन्नकूट बनाकर सभी इस त्यौहार को मानते।” तभी से यह कथा प्रचलित है और गोवर्धन पूजा का आधार बनी हुई है।

गोवर्धन पूजा का महत्व और आज का संदेश

यह कथा केवल एक कहानी नहीं, बल्कि जीवन का पाठ है। आज के पर्यावरण संकट के दौर में गोवर्धन पूजा हमें प्रकृति संरक्षण की याद दिलाती है। गायों की पूजा से हम पशु कल्याण को बढ़ावा देते हैं, जबकि अन्नकूट से समृद्धि और दान का संदेश मिलता है। यदि आप इस वर्ष गोवर्धन पूजा कर रहे हैं, तो गोबर से पर्वत बनाएं, 56 या 108 व्यंजनों का भोग लगाएं और परिक्रमा करें।

पूजा विधि और सांस्कृतिक विविधताएं

गोवर्धन पूजा में गोबर से पर्वत बनाकर दूध, दही, गुड़ आदि से स्नान कराया जाता है। अन्नकूट में 56 या 108 व्यंजन बनाए जाते हैं, जो भगवान को अर्पित किए जाते हैं। उत्तर भारत में यह ‘अन्नकूट’ के नाम से जाना जाता है, जबकि गुजरात में ‘न्यू वर्स’ के रूप में मनाया जाता है। दक्षिण भारत में यह कम प्रचलित है, लेकिन वैष्णव मंदिरों में कृष्ण लीला का नाट्य रूपांतरण होता है।

आज के दौर में, जब जल संकट और पशु क्रूरता बढ़ रही है, गोवर्धन पूजा एक जागरूकता अभियान बन सकती है। यह कथा हमें सिखाती है कि अहंकार (जैसे मानवीय हस्तक्षेप से जलवायु परिवर्तन) का अंत विनम्रता से ही संभव है। शोध बताते हैं कि इस तरह के त्योहार सांस्कृतिक एकता को मजबूत करते हैं।

दोस्तों, यह त्योहार हमें बताता है कि छोटी-छोटी बातों में भी भगवान की लीला छिपी है। दीवाली पर इस कथा को परिवार के साथ साझा करें और प्रकृति का सम्मान करें। यदि आपको यह ब्लॉग पसंद आया, तो कमेंट में अपनी गोवर्धन पूजा की यादें शेयर करें!

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